नये साल की खरीददारी करने नीना बाजार गयी।मगर फलों और सब्ज़ियों के दाम सातवें आसमान पर पहुंच गया है।हर व्यक्ति काम चलने लायक सामन ही लेकर अपना रस्ता पकड़ रहे है।वहाँ नीना की नजर एक ठेले वाले पर पड़ी और वह थम गयी।महज आठ-नौ साल का वो दुबला-पतला लड़का होगा।और बड़े से बड़ा हिसाब-किताब चुटकियों में कर रहा है।नीना ने उससे पुछा किस स्कूल में पढ़ते हो,यहाँ ये काम क्यूं कर रहे हो? उस बच्चे ने बड़े मासूमियत से कहा’ आँटी जी मेरे माता-पिता मजदूरी करके भी मुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाते थे,उनका सपना था की मैं वैज्ञानिक बनू।मुझें स्कूल में भी सभी आर्यभट्ट बुलाते थे। पर कोरोना ने मेरे माँ-बाप दोनो को मुझसे छिन लिया।अब पेट पालने के लिए भारे पे दिन भर फल-सब्ज़ी बेचता हूँ।रात को स्टेशन पर सो जाता हूँ।’नीना को मानो साँप शुंघ गया।भाग्य की ये कैसी बिडंबना।उसकी ममता जागृत हो उठी, उसने बच्चे से कहा-‘मेरे पास रहोगे,मेरे बेटे बनकर।’उस लडके की आंखों से स्नेह अश्रु बहने लगे।नीना ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया।’कि शुक्रिया तेरा तुने किसी के सपनों को पूरा करने का मुझे जरिया बनाया।और शायद इसी पुत्र-रत्न के लिए तुने आज तक मेरि कोख सुनी रखी।नव वर्ष में इस अनुपम उपहार के लिए पुन:धन्यवाद परमपिता।’

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