मेरे हमसफर

मेरे हमसफर

1 सब खोकर जिसे पाना चाहे
दिल,चाहत का वो अरमान हो तुम।
दिल,जिगर,धड़कननही,मेरि तो अब जान हो तुम।।


2 थक कर चैंन पाये जँहा मन,शुकून भर वो आराम हो तुम।    
जिस के बाद सुबह की ख्वाहिश
न रहे,वो मएकश शाम हो तुम।।    

 
3 जिसका नशा सर चढ़ कर बोले,
मेरे हमसफर वो दिलकश जाम हो तुम।
जिसे पा कर और किसी की जरूरत न हो,
उम्मीदों का वो ताजा बागान हो तुम।।        


4 दर्द में भी जिसकी झलक से शुकून मिलता हो,
हर दुआँ से बेहतर वो मुस्काँन हो तुम।            
मिल जाये खुदा ऐसी चाहत कहा हमें,
बक्सा है जिसे मेरा वो हँसी फरमान हो तुम।।    

               
5 मेरि खुशियों की खातिर सब कुछ लुतानेवालें,
मेरि छोटि सी दुनियाँ का सारा जहाँन हो तुम।          
तलब अब नही ‘रजनी’ को किसी शोहरत की,
मेरे हमसफर मेरि तो अब पहचान हो तुम।।      

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