मित्र बनाओ प्रेम को , बाँट चलो पथ नेह।
मिट जाएगी एक दिन , हाड़-मांस की देह।।
सखा सुदामा दीन का , मित्र द्वारकाधीश।
गले लगाया मित्र को , तीन लोक के ईश।।
ऐसी करिए मित्रता , कृष्ण – सुदामा प्रेम।
हृदय प्रेम संवेदना , चाह सदा सुख -क्षेम।।
सेवा करिए मित्र की , तृप्त हृदय हो जीव।
दोस्ती की थी राम ने , तृप्त हुए सुग्रीव।।
रखना पावन भावना , बचे मित्र की लाज।
लाभ-हानि क्यों सोचना,करो मित्र हित काज।।
————————–जुगेश चंद्र दास