मित्रता पर लुटाये हैं दिल जान हम||
दोस्त माना तुझे,जब से मैने सनम||
तेरे कदमों में जन्नत सदा देखती||
सच जो पूछे तो तुझमे खुदा देखती||
तुझको ना देखूं गर नैन हो जाते नम||
तुझपे खुशियाँ मै अपनी लुटाती रही||
रूठा तू जब तुझे मै मनाती रही||
हँस के हमने सहे तेरे सारे सितम||
मित्रता पर लुटाये हैं दिल जान हम||
आज मेरी सुखद मित्रता लग रही||
जिंदगी साथ मित्रों के हो खिल रही||
बाँट लेते हैं मनमीत सच मेरे गम||
मित्रता पर लुटाये हैं दिल जान हम||
डॉ. इन्दु कुमारी मधेपुरा बिहा