पथ के प्रेमी (कविता)

पथ के प्रेमी (कविता)

हम आज के पथ के प्रेमी है,
कल की हमको परवाह नही। अंगारों पे चल जायेगे,
क्यूं मिलेगी हमको राह नही?
है सोच नई,है सत्य नया,,,,                                  

राहों में आन्धी-पानी है,
ये चाह मगर तुफानी है।
इन सब से हमको लड़कर के, अपनी पहचान बनानी है।
है बात नयी,जज्बात नया,,,,,,,                                  

अब बीज से अंकुर फुटेगा,
हर मानव अब सुख लूटेगा।
ज्ञान की गंगा लहरायेगी,
हर ओर तरक्की छायेगी।
है प्रीत नयी,है ओज नया,

अब तन_मन को वारेंगे हम,
विश्व बंधुत्व की ओर बढ़ चला कदम।
अब नवनिर्माण ही तय होगा,
संस्कृति का न अब क्षय होगा।
है सीख नई, है खून नया,,

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