राखी की लाज
भाई को राखी बाँध
नेत्र मेंअश्रु लिए
बहन कहती कि
गाढ़े दिनों में
तू भूलना मत मुझे भैया
मेरी राखी की लाज रखना।
जिस दिन स्वामी तज दे मुझे
और सास ससुर देवर मिल
देने लगे घोर दुख मुझे
उस दिन तू सहारा बन
राखी की लाज रखना
जिस तरह बादशाह हुमायूँ ने
बहन कर्मवती को
संकट से उबार
रखी उसकी राखी की लाज
उसी तरह भैया तू
रखना मेरी राखी की लाज ।
बचपन से लेकर विवाह तक
घर और बाहर
सब दिन की तूने रक्षा मेरी
तेरे ही बल वहाँ
मैं शान से रहती
अतः तुझसे यही निहोरा कि
मेरी राखी की लाज रखना ।
नहीं चाहिये उपहार कुछ मुझे
बस स्नेह चाहिए तेरा
कभी गरीब जान मुझे
तू बिसारना मत भैया
इस राखी की लाज रखना ।
धर्मदेव सिंह