रक्षाबन्धन

रक्षाबन्धन

रक्षाबन्धन
रक्षाबंधन भाई द्वारा बहिन की रक्षा का अलिखित पवित्र अनुबंध
माना जाता है । क्योंकि बहन-भाई का नाता बड़ा नाजुक पवित्र संबंध हैं । पहले तो मोळी का सूत्र ही सबमें सबसे पवित्र समझा जाता था । अब समयांतर राखी में हो गया है रूपांतर। अन्यथा न लें हर चीज की तरह, हर रीत की तरह इसमें भी हमने दिखावा व आडंबर भर दिया हैं । यथाशक्य कीमती से कीमती और अच्छे से अच्छे फैशनेबल से फैशनेबल आदि की होड़ा-होड़ लग गई है जिसका कोई अन्त नहीं है । मेरी इसमें विनम्र सोच है की यह प्रतिस्पर्धा हमारा चिन्तन माँगती है । इस पवित्र त्यौहार के पवित्र रक्षा सूत्र को हम सादगी और पवित्रता से संपन्न रखें । भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबन्धन का त्यौहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्यौहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा करने को बन्धन बांधती है ।जिसे हम राखी कहते हैं। यह एक हिन्दू व जैन त्यौहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रक्षाबन्धन का राखी या राखी पूर्णिमा पर्व के रूप में महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी आदि जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्यौहार है ।रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है। रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है।भाई अपने सामर्थ्य अनुसार बहनों को उपहार भी देते है । राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं । रक्षाबंधन के दिन बाजार मे कई सारे उपहार बिकते है ।उपहार और नए कपड़े खरीदने के लिए बाज़ार मे लोगों की सुबह से शाम तक भीड होती है। घर मे मेहमानों का आना जाना रहता है। रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई से मिले उपहार से प्रसन्नता का अनुभव करती है। रक्षाबंधन एक ऐसा त्यौहार है जो भाई बहन के प्यार को और मजबूत बनाता है । इस त्यौहार के दिन सभी परिवार एक हो जाते है और राखी, उपहार और मिठाई देकर अपना प्यार साझा करते है। वर्तमान में प्रचलन से यह परंपरा अब भाई और बहन के बीच ही सिमट कर रह गई है यह अच्छा भी है। भाई को अपनी बहन की रक्षा का वचन देना चाहिए और बहन भी भाई की लंबी आयु की कामना करें। भविष्यपुराण के अनुसार यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है –
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।) |
किसी ने कहा है की –
मिली खुशियाँ तो नन्दनवन सा खुदको कर
लिया हमने ।
महक रिश्तों की बिखरी खुद को चन्दन कर
लिया हमने ।
समूची सृष्टि में ऐसा वतन त्यौहार न कोई ।
बंधा बहिना से राखी खुद को पावन कर लिया हमने ।
इन्ही शुभ भावों से आज के दिन सारी बहिनों को वन्दन ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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