रंग
मौसम वातावरण के हिसाब से ,प्रकृति ने
इंसानों को कर दिया गोरा और काला ।
पर, सबका एक जैसा ही रखा भूख़ का निवाला ।
प्रकृति ने कहा ,
कि ये फूल लाल होगा ,ये हरा
इसको पीला कर देते हैं इसको गुलाबी।
सबने मान लिए फ़रमान,
किसी ने न की कोई सरताबी।
लेकिन, प्रकृति के नन्हें कलाकार ने,
कर दिया साफ़ मना।
उसने रंग तो वही चुने,
लेकिन प्रकृति के रंगों का,
व्याकरण नहीं चुना ।
उसने चाँद को कर दिया हरा,
कुत्ते को कर दिया नारंगी।
ख़ुशियों को कर दिया ग्रे,
ग़म को कर दिया सतरंगी ।
बारिश को ,
जमीं से आसमान की तरफ़ करने लगा ।
सूरज को ख़ामोश और ,
चंद्रमा को लहूलुहान करने लगा ।
पत्तियों को बोला , तुम न,
हरे अच्छे नहीं लगते ।
इसलिए तुमको करता हूँ नीला ।
आसमान से कहा,
तुम बहुत दिन से नीला लिबास ओढ़े हो ,
इसलिए तुमको देता हूँ एक कुर्ता रंगीला ।
सफ़्हा पलटा ,तो देखा
वक्त से अपने रंग टपक रहे थे ।
कुछ बच्चे रंगों की बरसात में ,
ख़ुशी ख़ुशी उछल रहे थे ।
प्रकृति भी ख़ुश थी कि कोई है ,
जो अपनी राह ख़ुद चुन रहा है ।
रंग मेरे तो हैं ,
अपने ख़्वाबों में ,
रंग अपने हिसाब से भर रहा है ।
काश, सभी भर सकते
अपने फूलों शूलो को अपने हिसाब से रंग ।
सब नहाते उस रंगों की बारिश में ,
न ही पड़ता किसी की ज़िंदगी में कोई भंग ।
न लड़ते रंगों के युद्ध
और न ही जागीर समझते किसी रंग को ।
सभी रंग होते सभी के ,
न ही बढ़ावा देते हम रंगों की जंग को ।
@आलोक सिंह “गुमशुदा”