शहर (कविता)

शहर (कविता)

न भाया शहर हमको तेरा,,
रौशनी की न गुंजाइशे हैं,,
हर तरफ सिर्फ छाया अंधेरा,,,

दर्द,आंसू,बेकरारियां हैं,,,
के मुस्कुराता नहीं है सवेरा,,,
न भाया शहर हमको तेरा,,,

कश्मकश में ही जीतें है सब तो,,
खिलखिलाता नही कोई चेहरा,,,
न भाया शहर हमको तेरा,,,

मेरी मिट्टी की सौंधी सी खुशबू,,,
जिसमें गम का नहीं है थपेड़ा,,,
न भाया शहर हमको तेरा,,,

हम ये मांगे खुदा से इबादत,,,
कर शहर जो नहीं है सुनहरा,,
न भाया शहर हमको तेरा,,,

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