शिव आराधना

शिव आराधना

दोहा (गीतिका ,गजल,सजल,पूर्णिका,)या छन्दाचार्य जो भी उचित इस विधा की  नामकरण करें।किसी समूह में यह सजल है,कहीं,गीतिका कहते है कहीं पूर्णिका……।

मुझे किसी विवाद से नहीं शिव आराधना से मतलब है।

ॐ नमः शिवाय

🙏

बाबा भोले हैं बसे ,दूर शिखर कैलाश।
कैसे जाऊँ द्वार मैं दर्शन कीअभिलाष।

बाघम्भर शुभ केशरी, तन भभूति श्रृंगार,
चंदा शोभा दूज की ,मंद खिले मुख हास।

गंगा डूबी जूट में डमरू बाजे हाथ,
हरते आर्त पुकार में ,तीन भुवन की त्रास।

तपरत त्रिपुरारी सदा,आभूषण रूद्राक्ष,
मरघट भूत पिशाच सँग करते शंभू वास।

श्रृंगी भृंगी योगिनी , यक्ष जोगिनी दास
महाकाल औघड़ बड़े,काल लपेटे पाश।

आँक कनेर धतूर ले, अनउपयोगी फूल,
जूही बेला मोगरा ,दे जग किया सुभाष।

जग जिसको भाये नहीं,भोले ले अपनाय,
विष में आशुतोष रहे,अमृत छोड तलाश।

मीठे फल जग को दिये बिल्व पत्र लिएआप ,
महिमा शिव की भक्त को हो जाते आभास।

शशिधर की विषधर गले, सबके भोले नाथ
भवसागर संसार में, शिव का ही है आश।

ममता तिवारी “ममता” (छत्तीसगढ़)

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