शाक्त श्रद्धालुओं का स्थल है मुंडेश्वरी श्रंखला
सत्येंद्र कुमार पाठक
मुंडेश्वरी मंदिर – , कैमूर जिले के रामगढ़ का कैमूर पर्वय समूह की समुद्रतल से 600 फिट ऊँचाई पर अवस्थित पंवरा श्रृंखला पर सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय की उपासना स्थल मुंडेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में माता मुंडेश्वरी स्थित है । जिसकी ऊँचाई लगभग 600 फीट है वर्ष 1812 ई0 से लेकर 1904 ई0 के बीच ब्रिटिश यात्री आर.एन.मार्टिन, फ्रांसिस बुकानन ने 1812 ई. और ब्लॉक ने 1904 ई. मुंडेश्वरी मंदिर का भ्रमण किया था ।Iपुरातत्वविदों के अनुसार मुंडेश्वरी मंदिर परिसर से प्राप्त शिलालेख 389 ई0 है । नक्काशी और मूर्तियों उतरगुप्तकालीन मुंडेश्वरी मंदिर अष्टकोणीय पाषाण युक्त मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुण्डेश्वरी की पत्थर से भव्य मूर्ति आकर्षण का केंद्र है I माँ वाराही रूप में विराजमान है, जिनका वाहन महिष है I मंदिर में प्रवेश के चार द्वार मे एक को बंद और एक अर्ध्द्वर है I मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है I पत्थर से यह पंचमुखी शिवलिंग निर्मित किया गया है उसमे सूर्य की स्थिति के साथ साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है I मुख्य मंदिर के पश्चिम में पूर्वाभिमुख विशाल नंदी मूर्ति है । मंदिर परिसर में पशु बलि में बकरा तो चढ़ाया जाता है परंतु उसका वध नहीं किया जाता है । भभुआ से चौदह किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित कैमूर की पहाड़ी पर साढ़े छह सौ फीट की ऊंचाई वाली पहाड़ी पर माता मुंडेश्वरी एवं महामण्डलेश्वर महादेव मंदिर है। मंदिर का शिलालेख के अनुसार मुंडेश्वरी मंदिर में तेल एवं अनाज का प्रबंध राजा के द्वारा संवत्सर के तीसवें वर्ष के कार्तिक में २२वां दिन किया गया था। पंचमुखी महादेव का मंदिर ध्वस्त स्थिति में है। माता की प्रतिमा को दक्षिणमुखी स्वरूप में खड़ा कर पूजा-अर्चना की जाती है। माता मुंडेश्वरी की साढ़े तीन फीट की काले पत्थर की प्रतिमा भैंस पर सवार है। कनिंघ्म ने भी अपनी पुस्तक के अनुसार कैमूर में मं◌ुडेश्वरी पहाड़ी पर मंदिर ध्वस्त रूप में विद्यमान है। मुंडेश्वरी मंदिर की खोज गड़ेरिये द्वारा पहाड़ी पर आ अस्थित मुंडेश्वरी मंदिर में दीया जलाते और पूजा-अर्चना करते थे। धार्मिक न्यास बोर्ड, बिहार द्वारा इस मंदिर को व्यवस्थित किया गया है।
दैत्यराज चंड-मुंड के नाश के लिए जब देवी उद्यत चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए पहाड़ी में छिप गया था और यहीं पर माता ने चण्डमुण्ड का वध किया था। मुंडेश्वरी माता जानी जाती हैं। आश्चर्य एवं श्रद्धा से भक्तों की कामनाओं के पूरा होने के बाद बकरे की बलि चढ़ाई जाती है।, माता रक्त की बलि नहीं लेतीं, बल्कि बलि चढ़ने के समय भक्तों में माता के प्रति आश्चर्यजनक आस्था पनपती है। जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है तब पुजारी अक्षत को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं। बकरा तत्क्षण अचेत, मृतप्राय हो जाता है। थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तब बकरा उठ खड़ा होता है। बलि की प्रक्रिया से माता के प्रति आस्था को बढ़ाती है। पहाड़ी पर बिखरे हुए पत्थर एवं स्तम्भ पर श्रीयंत्र , सिद्ध यंत्र एवं मंत्र उत्कीर्ण हैं। मंदिर का प्रत्येक कोने पर शिवलिंग है। पहाड़ी के पूर्वी-उत्तरी क्षेत्र में माता मुण्डेश्वरी का मंदिर स्थापित , विभिन्न देवी-देवताओं के मूर्तियां स्थापित थीं। खण्डित मूर्तियां पहाड़ी के रास्ते मे विखरी पड़ी हैं । मुंडेश्वरी श्रृंखला पर गुरुकुल आश्रम और तंत्र मंत्र का साधना स्थल कथा। पहाड़ी पर मुंडेश्वरी गुफा है। मुंडेश्वरी मंदिर के रास्ते में सिक्के में तमिल, सिंहली भाषा में पहाड़ी के पत्थरों पर अक्षर खुदे हुए हैं। श्रीलंका से श्रद्धालु आया करते थे। मुंडेश्वरी श्रंखला पर अवस्थित ऋषि अत्रि द्वारा स्थापित गुरुकुल एवं मुंडेश्वरी गुफा रहस्यमयी है ।

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