सज़ा (लघुकथा)

सज़ा (लघुकथा)

कौओं कि कांव-कांव सड़कों पर बढ़ी हलचल और किवाड़ से आती रोशनी से जब मनु की आंखें खुली तो मनु को आश्चर्य हुआ। अभी तक तो मां नहा_ धोकर अपने चंद्रशेखर महादेव को जल चढ़ाकर रसोई में जुट जाती थीं।और फिर पकवानों की खुशबू से उसे उठना पड़ता था।मनु दौड़ते हुए मां के कमरे में गया। मां बिस्तर में पड़ी कराह रही थी। उन्हें तेज ज्वर था।
ग़ज़ल

ग़ज़ल

ये  दर्द  दिल में जगा न होता अगर वो मुझसे ज़ुदा न होता।