समय की मांग (श्रमिक)

समय की मांग (श्रमिक)

टूटता रहा बदन उसने उफ़ तलक न की,, उसकी रगो में बहता था ईमानदारी का लहू,, दो जून की रोटी बस उसकी ख्वाइश थी,, वो गुलाब भी बन सकता था मगर बना केवल गेहूं,,