तिल-तिल कर जीवन जलता है!

तिल-तिल कर जीवन जलता है!

तिल-तिल कर जीवन जलता है!
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दीर्घ-काल के अपमानों से-
‘सुलग रहा यौवन’ पलता है!
तन जलता है, मन जलता है;
तिल-तिल कर जीवन जलता है!!

‘अतृप्ति-की’, अभिलाषाओं में,
सूनेपन की ‌भाषाओं में,
दूर-दूर की आशाओं में,
प्रेम – भरी परिभाषाओं में;
अब चैन कहॉ पर मिलता है?
तिल-तिल कर जीवन जलता है!!

प्रति-क्षण रक्षण, प्रति- संघर्षण,
सदा जीजिविषा का कर्षण,
हलाहल का अति – पारावार
और सदा विष का बहु- वर्षण;
इक सागर मन्थन चलता है!
तिल-तिल कर जीवन जलता है!!

‘स्वप्न-रूप’ मिथ्या छावों में,
प्रणय – निवेदन सुख – भावों में,
मधु-मंजरी की गॉवों में,
प्रिय, तेरी कल्पित बाहों में-
पीड़ा का तरुवर फलता है?
तिल-तिल कर जीवन जलता है!!

वृष की किरणों में बहिर्गमन,
जब आग उगलती चले पवन,
रणमय, कणमय, प्रणमय- जीवन,
लघुमय, क्षणमय, जलता -जीवन;
पर कोमल दीपक बलता है!
तिल-तिल कर जीवन जलता है!! ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।‌‌।।।।।।।।।।।।।।।।‌।‌
✍️ बृजेश आनन्द राय जौनपुर

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