
ये भ्रष्ट कितने धृष्ट हैं, कानून का डर पी गए!
कितने बड़े चिकने घड़े, पूरा समुंदर पी गए!!
मोटी मछलियाँ खा गईं, चारा न काँटे में फँसीं।
भूखे मरे हैं साँप तो सब, दूध अजगर पी गए।।
बालू बची पुल में लगाता और ठेकेदार क्या?
सब माल मिलकर भ्रष्ट नेता और अफसर पी गए।
सतमंजिले वासुकि उठाए उच्च फण आकाश तक ।
ये दुष्ट झुग्गी-झोंपड़ी कच्चे बने घर पी गए।।
जन-टैक्स की कर लूट, जनता को पिला दी वारुणी।
भरकर चुनावी फंड का, काला सरोवर पी गए।।
डॉ० अनिल गहलौत