अनजाने बन चले जा रहे, सब अपने जाने-पहचाने।
साथ खिलखिलाते थे सुख में, हैं वे दुख में भृकुटी ताने।।
करवट लेगा समय कभी तो, सुर बदलेंगे सबके पल में।
सुख के दिन लौटे तो अरि भी, आ जाएँगे लाड़ लड़ाने।।
राजनीति के गलियारों में, मची हुई है मारामारी।
मछली बड़ी फँसाने को सब, फेंक रहे हैं अपने दाने।।
रहे पीटते ढोल समाजी, खुला घुटाला, चकित हुए सब।
हाथी वाले दाँतो से ही, कैसे चारा लगे चबाने!!
छापा पड़ा, कुबेरों के घर, नोटों का अंबार लग गया।
भरे लूट के काले धन से, सभी ठिकाने, सब तहखाने।।
तनिक चेत में आई जनता, हुई एक आ गए दुष्ट फिर।
फूट डालने जातिवाद की, ले आए वारुणी पिलाने।।
बँधे डोर से राम-नाम की, एक हुए थे अलग-थलग जो।
शीश पकड़ कर बैठे वे सब, आए थे जो आग लगाने।।
—डाॅ०अनिल गहलौत