अपनी मोहब्बत का शिकवा तुम से कैसे करूँ

मैं अपनी मोहब्बत का शिकवा तुम से कैसे करूँ , मोहब्बत तो हमने की है , तुम तो बेक़सूर हो , जानता हूँ मैं कि ये एक तरफ़ा प्यार है , लेकिन मेरी इस हालत का कोई तो ज़िम्मेदार है ।
फिर कौन क़ुसूरवार है , वो रचेता जिसने तुम्हें बनाया है इतना ख़ूबसूरत , तुम इंसान तो लगती नहीं हो , तुम तो हो संगमरमर की एक मूरत ।
उस खुदा ने ही तो बक्शी है तुम्हें ये शोख़ियाँ , या अदाएँ , बक्शा है ये नूर , ये सूरूर , जिसके कारण अब तुम हो गयी हो इतनी मगरूर ।
लेकिन उसी खुदा ने तो इंसानों को दीं हैं मोहब्बतें , उसने ही तो पैदा कीं हैं दिलों में ये चाहतें , यह हसरतें ।
तुम चलती हो तो लगता है कि जैसे चल रही हो कोई हिरणी , बहुत दिल पर वार करती है ये मृगनैनि ।
उसकी एक मुस्कुराहट को मैं समझ बैठा एक इशारा , लेकिन यह मेरी भूल थी , उसको तो मेरी शक्ल भी है नागवारा ।
फिर खुदा से एक दिन मेरी जिरहा हो गयी और बहस छिड़ गयी , मैंने खुदा से पूछा , कि या खुदा तूने ही तो इजात की ये मोहब्बत , मेरे सवाल का जवाब आप भी सुन लीजिए जनाब ।
खुदा ने कहा ओ नादान , यक़ीनन मैंने ही बनाई है मोहब्बत , लेकिन तेरे हाथों की लकीरों में , मैंने लिखी हुई है तेरी क़िस्मत ।
मैं भी ज़िद्दी था , ढीठ था , मैं हार नहीं था मानने वाला, तो फिर मैंने बहुत सोच समझ कर ये हल निकाला ।
मैंने कहा खुदा से , मैं plastic surgery करवा के बदल दूँगा अपने हाथों की लकीरों को , फिर क्या मैं बदल पायूँगा तक़दीरों को ?
खुदा कुछ अजीब ढंग से मुस्कुराया और उसने किया ऐसा व्यंग , जवाब सुनते ही मैं हो गया तंग और मेरे उड़ गए रंग ।
खुदा ने कहा फिर सब असली नहीं होगा , होगा duplicate !!
ओ मूर्ख तू इस प्यार व्यार के चक्कर में बेमौत मारा जाएगा , मैं खुले छोड़ दूँगा तेरे लिए जन्नत के gate.
सुन कर रब का ये फ़ैसला , परस्त हो गया मेरा हौंसला !!
फिर अब ये सवाल था कि मेरी ज़िंदगी का आख़िरी दिन कौन सा होगा ?
उस दिन यारों की महफ़िल सुनसान होगी , महफ़िल में मौन सा होगा ।
अभी तो वो जवान है , जिस दिन होगी उसकी शादी , उसी दिन से शुरू हो जाएगी मेरी बर्बादी ।
उसकी डोली उठेगी , मेरी अर्थी उठेगी , इधर उसकी बारात निकलेगी , उधर निकलेगा मेरा जनाजा ।
शायद उसको मेरे इश्क़ ऐ वहशीपन का अभी तक नहीं है अंदाज़ा ।
फिर ऊपर जा कर रब से करूँगा ये दलील , अगर मोहब्बत को हो जाना होता है नाकाम।
तो फिर तो इंसानों की ज़िंदगी से हमेशा हमेशा के लिए मिटा दे, इस जज़्बे मोहब्बत का नाम ।
और एक बात , दिल तो मेरा करता रहेगा धक धक , मैं भूत बन के उसका पीछा करूँगा सात जन्मों तक ।
कभी कभी मैं सोचता हूँ कि वो हाँ कह देती तो मैं क्या कर जाता , शायद मैं उसी वक़्त ख़ुशी से मर जाता ।
निरेन सचदेवा,बैंगलोर

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *