आरोग्य और समृद्धि का द्योतक शरदपूर्णिमा-“सत्येन्द्र कुमार पाठक”

सनातन धार ग्रंथों एवं ज्योतिष शास्त्र में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा व शरद पूर्णिमा का महत्वपूर्ण उल्लेख किया गया है । विक्रम पंचांग के अनुसार आश्विन मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को शारद पूर्णिमा , कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा , अमृत पूर्णिमा ,कौमुदी पूर्णिमा और प्रेम पूर्णिमा कहते हैं। ज्‍योतिष शास्त्र के अनुसार शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है।शरद पूर्णिमा को समुद्र मंथन करने से चंद्रमा, माता श्री महालक्ष्मी , अमृत कलश एवं भगवान धन्वंतरि प्राकट्य हुआ था । माता महालक्ष्मी का भगवान श्री विष्णु से विवाह हुआ था। त्रेतायुग में राक्षस राज रावण ने अमृत की बूंदे नाभि में प्रवेश किया था । चद्रमा ने वनस्पतियों , औषधीय पौधों का सृजन किया । द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। शरदपूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा की किरणों से भू स्थल पर अमृत गिरने के कारण हविष्य खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है। आयुर्वेद एवं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शारद पूर्णिमा की रात 9 बजे से 12 बजे के पूर्व खुले आकाश में भ्रमण कार् खीर का खानें से जीवन सुखमय रहता है । चद्रमा को क्षयरोग से मुक्ति मिली थी ।
साहुकार के पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है। साहूकार की पुत्रियों ने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। पूर्णिमा को मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और जितेन्द्रिय भाव से रहे। धनवान व्यक्ति ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए १०० दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक ग़रीबों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा किसी दीन दुःखी को अर्पित करें। शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं की उपासक जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।
प्रति वर्ष किया जाने वाला कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में सद्गति प्रदान करती हैं। पूर्णिमा आरोग्य, धन- प्राप्ति और ईश्वर को खुश करने करने का दिन है। स्मृतियों के अनुसार शरद पूर्णिमा का व्रत जो मनुष्य करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती और शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का विशेष योग एवं चंद्रमा बेहद चमकीला और खूबसूरत दिखते सोलह कलाओं से युक्त होकर दिखाई देता है।शरद पूर्णिमा आर्थिक समृद्धि के लिए लक्ष्मी पूजा, खीर खाने से बढ़ेगी रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है । शरद पूर्णिमा के दिन से सर्दियों की प्रारम्भ और मानसून की विदाई हो जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार 3 रात्रियों में मोह रात्रि, काल रात्रि और सिद्धि रात्रि है। शरद पूर्णिमा को मोह रात्रि कहा गया है । द्वापरयुग में भगवान कृष्ण ने पूर्णिमा के दिन महारास रचाने की योजना बनाई और इसका निमंत्रण उन्होंने माता पार्वती के लिए भेजा। माता पार्वती ने महारास में सम्मिलित होने के लिए भगवान शिव से आज्ञा मांगी, लेकिन भगवान शिव भगवान कृष्ण के महारास के प्रति मोहित हो गए हो गए और उन्होंने खुद स्त्री का रूप धारण कर महारास में शामिल होने का निर्णय लिया। शरद पूर्णिमा की रात्रि को ‘मोह रात्रि’ कहा गया है।पुरणों के अनुसार पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी धरती पर भ्रमण के लिए आती हैं और इस दौरान माता यह देखती हैं कि कौन जाग कर माता का स्मरण कर रहा है। जिस के घर माता की उपासना की जाती है उसके यहां साल भर तक महालक्ष्मी अपनी कृपा बरसाती हैं। माता लक्ष्मी के भ्रमण के कारण शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहा जाता है । सशरद पूर्णिमा की रात को अगर खुले आसमान में दूध और चावल से बनी खीर को रात भर के लिए रखा जाए टैब मानव जीवन आरोग्य और अमृत से परिपूर्ण हो जाता है। शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में चन्द्र की किरणें से अमृत वर्षा से हविष्य अथवा खीर अमृत प्राप्त करता है । अमृत खीर को ग्रहण करने से मनुष्य साल भर निरोगी रहता है । साहित्य चेतना , निरोगता और सर्वागीण विकास , सकारात्मक ऊर्जा का संचार , प्रेम की अनुभूति का प्रतीक शरद पूर्णिमा है ।

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