उस मरजाणी गिरकाणी नै मार दिया-“डॉ विकास शर्मा”

उस मरजाणी गिरकाणी नै मार दिया।
तीर नजरां का दिल मेरे में तार दिया।

कॉलेज के गेट प वा बैरण खड़ी।
मेरी उसकी गैल्यां नजर भिड़ी।

जींस टीशर्ट वा बैरण पहर रही।
मेरे मरण में ना कोय कसर रही।

रूप हुस्न का पाट रहया स चाला।
उसके गालाँ ऊपर तिल स काला।

कॉलेज के छोरे उस कान्हीं लखावैं।
उस बैरण नै आपणी कान्ही रिझावैं।

हर कोय उसनै देख पागल होरया।
देख जौबन उसका सुदबुध खोरया।

सांस मेरी अटक गयी जब बेरा लाग्या।
या नई मैडम स सुनते ऐ ओड़े त भाग्या।

पर के करूँ भाई दिल त मानदा कोणी।
यू तो आपणी हदां नै पिछाणदा कोणी।

“”विकास”” पढ़ना चाहवै प्रेम का पाठ।
उसके नाम लिखे कविताई वो दिन रात।

©® डॉ विकास शर्मा

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