ए दोस्त! कुछ इस तरह से अपनी दीवाली मनाना,
रिश्तों की दहलीज पर प्रेम का दिया तुम जलाना।
देख लिया तुमने कुछ हासिल नहीं हुआ द्वेष से,
गिले शिकवे भुलाकर अपनेपन से गले लगाना।
भुलाकर कड़वाहट नफरतों की रिश्तों से अपने,
तुम प्रेम की मिठास से शुरुआत नई कर जाना।
एक दूजे के विश्वास से रौशन होती रहे जिंदगी,
इसी विश्वास के सहारे हमेशा तुम जगमगाना।
“सुलक्षणा” कोशिश करना खुशियां बाँटने की,
बाँटने से हमेशा बढ़ता है खुशियों का खजाना।
©® डॉ सुलक्षणा