ऐसा था आपसी प्यार-“निरेन कुमार सचदेवा”

ठहाके छोड़ आए हैं कच्चे घरों में हम, रिवाज इन पक्के मकानों में बस मुस्कुराने का है ।
होली का हुडदंग , वो कीचड़ तक मल देना , ख़ूब गीला करना, ये सब छोड़ आयें हैं हम उन कच्चे घरों में , इन पक्के मकानों में क़ायदा सिर्फ़ मुँह पर रंग लगाने का है।
दीवाली के वो पटाके, वो अनार , वो फुलझड़ियाँ जलाना , आधी रात तक ये सब करना, ये सब उन कच्चे घरों में ही मुमकिन था, दीवाली पर इन पक्के घरों में रिवाज महज़ दीप जलाने का है ।
वो शरारतें , नादानियाँ , मनमानियाँ , वो उन कच्चे घरों की देन थीं, इन पक्के घरों में तरीक़ा और सलीक़ा सिर्फ़ दिखावे के रिश्ते निभाने का है ।
वो छोटी छोटी मनभावन लड़ाइयाँ , माँ बाप और भाई बहनों से नाराज़ होना, ये सब बहुत होता था , उन कच्चे घरों में, इन पक्के मकानों में कोई भी रिवाज ना रूठने का है और ना मनाने का है ।
वो भजन गाना, आरती करना, भगवान की पूजा करना , बहुत किया है ये सब हमने उन कच्चे घरों में , इन पक्के मकानों में तरीक़ा western music और pop music सुनने का है, और ऐसे ही गीत बजाने का है ।
क्यूँ आ गए हम इन पक्के मकानों में , क्या कमी थी उन कच्चे घरों में ?
बारिश की कुछ बूँदें टपकती थीं तो क्या हुआ, मज़ा आता था भीगने में ।
और भीग कर मस्ती करने में, गाने में , नाचने में ।
कमरे थे छोटे और थे कम, लेकिन मिलझुल कर बाँटते थे सब , हर ख़ुशी और ग़म ।
अगर कोई नन्हा बच्चा रोता था , तो कई हाथ उसे थामने को रहते थे तैय्यार, ऐसी थी आपसी मोहब्बत , ऐसा था आपसी प्यार !
माँ की लोरी सुने बिना किसी बच्चे को नींद ना आती थी , कोई सो ना पाता था, दिलों का दिलों से एक ऐसा अटूट नाता था ।
अब कमरे हैं ज़्यादा और बड़े भी, एक दूसरे को देखने का मौक़ा ही नहीं मिलता , सब हैं बहुत मसरूफ , ऐसा होता है हमें महसूस ।
फीकी फीकी हँसी है, ठहाके नहीं हैं, एक दूसरे से दिल की बात खुल कर करें , मिलते ऐसे मौक़े ही नहीं हैं ।
सच बोलूँ तो पक्के मकानों में रिश्तों की बुनियाद है कच्ची , ये बात है बिलकुल सच्ची ।
कच्चे घरों में रिश्ते पक्के हैं , सब एक दूसरे के दुःख सुख के साथी हैं, एक दूसरे के सगे हैं !
Just some thought provoking lines !!

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