कल अचानक एक कवि मित्र मिल गए
मुझे देखते ही उनके चेहरे खिल गए
बोले – बहुत दिनों बाद हुई है मुलाकात
आइए बैठकर कर लें हम चार बात
उन्होंने कहा – यार एक बात बताइए
जरा ये पहेली सुलझाइए
कि हमेशा कवि सम्मेलन ही
क्यों होता है
कवयित्री सम्मेलन क्यों नहीं
हमने कहा बात तो आपकी सही है
लेकिन हमारे दिमाग पर अभी जमी दही है
आप ही बताइए और पहेली सुलझाइए
उन्होंने कहा जरूर बताएंगे मगर
उससे पहले ये बताईए कि
हर कवि सम्मेलन में पांच कवि
और एक ही कवयित्री क्यों होती है
हमने कहा कभी कभी
सात आठ कवि भी होते हैं
उसने कहा बिल्कुल सही पकड़े हैं
क्योंकि कर्ण और दुर्योधन के भी लफड़े हैं
कवि सम्मेलन के मंच पर बैठकर
ये कवि कभी व्यंग बाण
तो कभी हास्य के तीर छोड़ते हैं
और श्रोता इनसे घायल होकर
अपने अपने घर को लौटते हैं
पांच कवि पांचों पांडव का
प्रतिनिधित्व करते हैं और
कवयित्री द्रोपदी का…
एक मंच संचालक भी होता है
जो कृष्ण बन कार्यक्रम आगे बढ़ाता है
और ये श्रोतागण कौरव सेना का
प्रतिनिधित्व करते हैं…
जब तक देश में द्रोपदी सुरक्षित है
तब तक देश में शान्ति स्थित है
आज देश में यही हालत है
दुर्योधन दुशासन चीरहरण को
अंजाम देना चाहते हैं और
पांच पाण्डव मूक दर्शक बन बैठे हैं
और मेरे प्रश्न का उत्तर भी यही है
कि पुरुष प्रधान समाज में आज भी
“कवि” सम्मेलन ही कहलाता है …!!!
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