
विधाता छन्द पर गीत
भुला दूँ कुछ दिनों में ही,नहीं ऐसी कहानी हो ।
सदा जीती रही जिसको, वही तो ज़िंदगानी हो ।
शिकायत क्या करूँ उससे,अगर क़ीमत चुकानी हो।
भुला दूँ कुछ दिनों में ही,नहीं ऐसी कहानी हो।
लिखी चिट्ठी तुम्हें जब भी, कलम दिल की चलाई है।
बहे आँसू बनी स्याही, सही ऐसी जुदाई है।
अधर मेरे सजी रहती, वही तो धुन सुहानी हो ।
भुला दूँ कुछ दिनों में ही, नहीं ऐसी कहानी हो ।
नहीं काया नहीं माया, प्रतीक्षा बस मुझे तेरी।
निहारूँ रात -दिन राहें,पलक को मैं बिछा मेरी।
तुम्हें ईश्वर बना पूजूंँ , मुहब्बत की रवानी हो ।
भुला दूँ कुछ दिनों में ही, नहीं ऐसी कहानी हो।
तुम्हीं ने ज़ख्म जो मुझको, दिये पुचकार लेती हूँ।
तुम्हारी याद जब आती , इन्हीं को प्यार देती हूँ।
मुझे हर घाव की रंगत, लगे ज्यों ज़ाफरानी हो ।
भुला दूँ कुछ दिनों में ही, नहीं ऐसी कहानी हो।
सुविधा पंडित