(एक ख़त जो पिता ने लिखा बेटे के नाम वृध्दाश्रम से।)

प्रिय बेटा,
तू फिक्र न कर मेरी
मैं बड़ा खुश हूँ यहाँ।
गुफ्तगू करने के लिए पंछी है मौजूद यहाँ।
चैन से सोने के लिए बिस्तर है तन्हा यहाँ।
तू फिक्र न कर मेरी
मैं बड़ा खुश हूं यहाँ।
तमाम उम्र का हिसाब रखने को कैलेंडर है दीवार पर यहाँ।
बहुत व्यस्त रहता हूं,दीवारो से ही बातें करता हूं यहाँ।
तुम फिक्र ना करो मेरी
मैं बड़ा खुश हूँ यहाँ।
बड़ा सुकून महसूस करता हूँ,
न कोई पूकारने वाला
न कोई पूछने वाला है यहाँ।
बेफिक्री से जिंदगी जीता हूँ, ना दुनियादारी,ना रिश्तेदारी
ना कोई परेशानी है यहाँ।
तुम फिक्र ना करो मेरी
मैं बड़ा खुश हूँ यहाँ।
जिंदगी बड़े चैन से बसर हो रही है यहाँ
किसी से कोई शिकवा ना गिला ,
भगवान भरोसे जी रहा हूँ यहाँ।
दोस्तों से घिरा रहता हूँ,
सब दवा दारू की बातें करते हैं
एक दुसरे को तसल्ली देते है यहाँ।
तुम फिक्र ना करो मेरी
मैं बड़ा खुश हूँ यहाँ।
तारे गिन गिन रात आराम से गुजारता हूँ,
दोपहर छत पर खयाली चित्र बनाता हूँ यहाँ।
महफूज़ रहता हूँ, मनमौजी बना घूमता हूँ,
बीती बातों का जरा भी जिक्र नहीं करता हूँ यहाँ।
तुम फिक्र ना करो मेरी
मैं बड़ा खुश हूं यहाँ।
ना आने वाले दिन की चिंता,
ना बीते दिनों की कोई शिकायत यहाँ।
ना अफ़सोस किसी बात का ,
सिर्फ़ बेफ़िक्री से वर्तमान में जीता हूँ यहाँ ।
तुम फिक्र ना करो मेरी
मैं बड़ा खुश हूँ यहाँ।
तुम्हें याद करने को वक्त ही नहीं मिलता,
इतना मशगूल रहता हूँ यहाँ।
बीती बातें भुलाने की नाकाम कोशिश में
समय बीत जाता है यहाँ।
तुम फिक्र ना करो मेरी
मैं बड़ा खुश हूँ यहाँ।
खुशकिस्मती देखो मेरी जिंदा रहने का इंतजाम पूरा तुमने किया है यहाँ।
बस इसी तरह आख़री बिदाई की
पूरी तैयारी भी करली है मैंने यहाँ।
तुम फिक्र ना करो मेरी
मैं बड़ा खुश हूं यहाँ।
(कृपया इस ख़त का जिक्र किसी से भी मत करना।)
तुम्हारा,
पिता
Ravi Kabra
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