खिड़की के पास

कल शाम को खिड़की के पास खड़ी थी, कि अचानक मेरी नजर।साइकिल लेकर आ रहे, व्यक्ति पर गिरी।मेरी आंखों में खुशी छलक उठी, और मेरी जुबां पर पापा निकल आया।लेकिन जैसे ही उस व्यक्ति की, साइकिल वहां रुकी की।मेरी आंखों में भी, आंसू निकल आए।क्योंकि वह मेरे पापा नहीं थे, कोई और था। पढियार उषाबेन नानसिंहपीएचडी शोधार्थीश्री गोविंद गुरु यूनिवर्सिटी, गोधरा, गुजरात

2 Comments

  1. Kuldeep singh रुहेला

    बहुत सुंदर लिखा अति उत्तम अति उत्तम आपकी लेखनी

    • Ghanshyamsinh

      बहुत सुंदर

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