“सरित” रात को तारा टूटा, बिलकुल मेरे जैसा था l
हँसता रहा गगन में चंदा, वह भी तेरे जैसा था ll
सच्चे मन से मेरे मन नें, उनके ही. मन को चाहा l
क्या बतलाऊँ कड़बाहट का, वो मीठापन कैसा था ll
जिसकी सूरत मूरत में भी, झलक सादगी की देखी l
क्या बतालाऊँ एक रात का, चित्र भयावह कैसा था ll
जिसे रातरानी समझा था, वह भी सेमल निकल गया l
कैसे लिख दूं खुली आँख का, चित्र भयानक कैसा था ll
गीत ग़ज़ल मुक्तक कविता का, मुखड़ा सुन्दर होता है l
पढ़कर आप समझ सकते हो, “सरित” कथानक कैसा था ll
ग्राम कवि सन्तोष पांडेय “सरित” गुरु जी