ग़ज़ल( हिंदी)-“हलधर”

कमसिन है लाज़वाब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।
समझो नहीं खराब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

ये मकतबों में मयकदों सा काम भी करे ,
शब्दों की इक शराब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

वो पूंछते हमें करी क्या खोज आप ने ,
हर प्रश्न का ज़वाब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

पढ़ना इसे ज़बाब तो दिल थाम के पढ़ो ,
अश्कों की इक क़िताब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

जिसने भी पढ़ के देख ली वो सोचता रहा ,
सहरा में इक सराब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

वो जूझते रहे यहां भाषा विवाद में ,
हमको मिला खिताब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

हलधर “इसे निकाल के लाये हैं बाग से ,
गैंदा नहीं गुलाब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

    हलधर

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