
खगोलशास्त्र विज्ञ में जुड़ा नया सुबोध है ।
सशक्त हिंद की जमीं विशाल विश्व शोध है ।।
प्रसन्न भारती हुई सुरम्य बंध क्षेम का ।
शशांक हस्त में सजा सनेह सूत्र प्रेम का ।।
तृतीय चंद्रयान ने रचा नया अतीत है ।
प्रसिद्धि विश्व में मिली विशेष भव्य जीत है ।।
विवेक की विशालता सुपंथ सत्य शुद्ध है।
प्रणम्य विज्ञ बुद्धता सुकर्म से प्रबुद्ध है ।।
असाध्य दक्षिणी जहाँ सभी विदेश पस्त है।
वहीं उतार यान हिंद शौर्यता में मस्त है ।।
धरा सहर्ष झूमती प्रफुल्ल आसमान है ।
समस्त बाल वृद्ध क्या युवा प्रसन्नवान है।।
वसुंधरा सुअंक में सुयोग कीर्तिमान का ।
सजा रहे महा ध्वजा शशांक में सुजान का ।।
मुझे महान राष्ट्रजन्य का विशाल गर्व है ।
सुसांध्य रश्मियाँ कहे सुराष्ट्र आज पर्व है ।।
अपार गर्व से हवा सुकंत खेल खेलती ।
कभी यहाँ कभी वहाँ सुरम्यता उड़ेलती।।
महान हिंद की बिसात सर्वदा अमेय है।
सुशीर्ष विद्यमान हो प्रधानता ही ध्येय है।।
रेखा कापसे ‘कुमुद’
नर्मदापुरम मप्र