
महबूब चाय सा बनाओ, जिसकी आदत नहीं, तलब लगे।
महबूब ऐसा, जो आपके जीने का सबब बने।
अच्छी लगती है चाय की चुस्की, चाय का कड़कपन ।
कुछ इसी तरह से अच्छी लगनी चाहिए महबूब के दिल की धड़कन।
सुबह उठते ही क्या चाहिए, एक प्याली चाय——और वो वक़्त पर ना मिले तो मच जाती है हाय हाय।
कुछ इसी तरह , सुबह महबूब ना हो दीदार तो आप हो जायें बेज़ार।
सर्दी का मौसम, और सुबह एक प्याली चाय पीने का कुछ अलग ही है मज़ा।
कुछ इसी तरह सुबह उठने पर सुनाई देनी चाहिए महबूब के प्यार की सदा।
सर्द मौसम , और एक गर्म प्याली चाय, क्या लुत्फ़ आता है।
कुछ इसी तरह महबूब का चेहरा हमें भाता है ।
ना मिले सुबह चाय तो दिन अच्छा नहीं कटता।
और सुबह महबूब ना दिखे तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
चाय पीने पर मिलती है ख़ुशी, देख महबूब को होंठों पर आ जाती है हँसी।
चाय और महबूब दोनों ही हैं हमें अज़ीज़, सुबह दोनों ही हैं मिल जाते , हम हैं खुशनसीब, दोनों हैं हमारे क़रीब।
चाय की प्याली हो साथ में , और हाथ हो महबूब के हाथ में ।
दोनों का निराला है अन्दाज़, दोनों के कारण ही हो जाता है मस्ती का आग़ाज़।
दुनिया से डर लगता है , इसीलिए अब तक अपने इश्क़ को रखा हुआ है हमने एक राज़।
चाय पीने के बहाने , आ जाते हैं घर की दहलीज़ पर——और महबूब की नज़रों से टकरा जाती है नज़र।
बेज़ारी, बेक़रारी है इतनी, रोज़ सुबह उठ जाते हैं जल्दी——या ख़ुदा कुछ ऐसा कर कि मेरी महबूबा के हाथ जल्दी हो जायें पीले!
और बेतहाशा प्यार करने के फिर बन जायें वसीले——-!!
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा।
Wah kya baat kya baat 👌👌✍️✍️