जज्बात ही बनकर मिटें, करते नहीं वो बात भी।
तस्वीर हम देखा करें, कटती नहीं है रात भी।
वो महजबीं वो नाजनीं,लगती हमें वो दिलनशीं,
हम अजनबी करते भी क्या,ले न सके खैरात भी।
तस्वीर से क्या बात हो, जज्बात ही बनकर मिटें,
वो ख्वाब में आया करें,सजते नहीं हालात भी।
बेबस करें तन्हाइयां, खुद से कहें क्या हम भला,
उनसे मिलें तो कह सकें, मुश्किल हुए लम्हात भी।
क्या इश्क में कर दी खता, क्यूं हाल ये बे-हाल हैं,
क्या हो गया तुझसे चहल जो मिल रही अब मात भी।
स्वरचित/मौलिक रचना।
एच. एस. चाहिल। बिलासपुर। (छ. ग.)