
जब भी कहना!
हाँ निस्वार्थ भाव से कहना,
अपनेपन के उभरे चाह से कहना,
गुनगुनाते आवाज से कहना,
हसीन ख्वाहिशों में डूबकर कहना
खुशी से चीखकर कहना,
फिर फिर धड़कन धड़का कर कहना,
आवाज में बनावट हटाकर कहना,
सारे गिले शिकवे झार कर कहना
इश्क में दिल हारकर कहना,
आते ख्वाब संजोकर कहना,
इजहार अमित खोह कर कहना,
मेरा नाम अपने नाम में मिलाकर कहना,
सारे अरमान एक शब्द में सजाकर कहना,……।
बैरी जमाना है प्रेम का ,
बैर का नामोनिशान मिटाकर करना,
प्रेम एक अनोखा भाव है,
वध अनैतिक शोर का करना,
कह दो खुलकर अब क्या शरमाना,
पिरोना जीवन इसमें,
गाए सारा जवाना तराना …….।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई