
परिंदे शुक्रगुज़ार हैं पतझड़ के भी दोस्तो , तिनके कहाँ से लाते अगर सदा रहती बहार ?
मधुर मिलन क्या चीज़ है , उस आशिक़ से पूछो , जिसने महसूस किया है सज़ा ऐ इनतज़ार ।
जीतने का जुनून , क्या मिलता है सुकून , ये वो ही जान सकता है जिसने देखी हो पराजय , शिकस्त और हार ।
बेचैनी , तड़पन , अकेलापन , जो ऐसे परिस्थितियों से गुज़रा हो , उसके लिए जन्नत से भी बहतर हैं वो पल ,जिन पलों में है इज़हार , क़रार और इकरार ।
सिक्कों की झंकार की आहट , सुनने को तरसता है फ़क़ीर , और कश्मकश देखो , कई बार रोज़ रोज़ यही आहट सुन सुन कर , बेज़ार हो जाता है एक अमीर ।
क्यूँकि राजा भी कभी अपने आप अकेले में कुछ पल चाहता है बिताना , लेकिन प्रजा उसे कभी छोड़ती हीं नहीं , उसको ये दायित्व भी पड़ता है निभाना ।
सेहत अनिवार्य है , जानते है वो जिनको लग जाती है कोई बीमारी , मलकियत की सही परिभाषा वो ही जानते हैं , जिन्होंने सारी उम्र की हो तीमारदारी ।
शायद खुदा ने बहुत सोच समझ कर ये फ़र्क़ बनायें हैं , इसीलिए उसने स्वर्ग और नर्क बनायें हैं ।
इतमीनान से भरपेट खाने में क्या लुत्फ़ है , पूछो उस से जिसने देखी है भुखमरी ।
खुली हवा में घूमने का , आज़ाद होने का अहसास क्या होता है , पूछो उन रिहा हुए क़ैदियों से , क़ैद में कैसे उनकी आँखें रहती थी डरी डरी ।
अकेलापन, वीरानापन , ख़ुद में एक रोग है , ऐसे व्यक्ति से कोई चंद पल बात कर ले तो चमक जाती है उसकी क़िस्मत ।
शायद किसी के साथ सुख दुःख बाँटने की , हर इंसान की होती है हसरत ।
तेज़ गरमियों की तपतपाती लू जिस को इसका अहसास हो , वो भरपूर आनंद उठा सकता है बारिशों का ।
जिसने पूरी ज़िंदगी दो निवाले जुटाने की भाग दौड़ में बिताई हो , उस से ज़्यादा अच्छा और कोई नहीं जान सकता सबब ख़्वाहिशों का ।
कुछ लाचार लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें किसी कारणवश नींद नहीं आती , इन को ना दिन भाता है, और ना रात है भाती ।
ये असली क़ीमत जानते हैं ख़्वाबों की , सपनों की , बिछड़ने के बाद ही महसूस होती है कमी अपनों की ।
नामुमकिन है कि सदा बहार रहे, मौसम का बदलना लाज़मी है , हर मौसम का है अपना एक अलग महत्व ।
जिसने सफलता की सीढ़ी धीरे धीरे चढ़ी हो , परेशानियों से घिर कर भी आगे बढ़ता रहा हो, वोही जानता है कि क्या होता है अस्तित्व ।
विधाता ने जब ये कायनात बनाई होगी , तो इतने अलग अलग जज़्बात और मौसम बनाने में कुछ तो मक़सद होगा रब का ।
वो दाता है , रचेता है , लाखों बाशिंदों की ज़िम्मेदारी है रब पर , उसे ध्यान रखना पड़ता है सब का ।
तो फिर ये सब कहने और लिखने का क्या निकलता है निष्कर्ष ?
यही की हरेक की ज़िंदगी में होता है संघर्ष ।
ये सच है कि किसी की ज़िंदगी में कम , और किसी की ज़िंदगी में ज़्यादा ।
इंसान है एक कठपुतली , ईश्वर की बनाई डोरियों पर नाचता रहता है , ज़िंदगी एक शतरंज की बाज़ी है और इंसान है एक पियादा ।
लेखक—- निरेन कुमार सचदेवा।