
जीजा साली खेलते,मिलकर देखो होली।
भंग चढ़ा ली सालीने बेहोश- सी वह हो
ली।
जीजा रंगता साली को, मल -मल गोरे गाल।
बदला लिया साली ने, बुरा किया जीजे का हाल।।
पति गए परदेस, मौका मिला साली को।
खेल रही होली जीजा संग, पी ली है भंग।
सिर चढ़ गया नशा भंग का,
कभी हंसती, कभी रोती,
बड़बड़ा रही अंट संट।
जीजाजी की पत्नी, दौड़ी- दौडी आई।
देखा जो हाल पिया का,
हाथ पकड़ घर ले आई।
चपत बहन को भी लगाई।।
चंद्रकला भरतिया
नागपुर महाराष्ट्र.