
राम और रावण में महज़ दो अक्षर का फ़र्क़ है, लेकिन भगवान राम थे मर्यादा पुरुषोत्तम और रावण था अभिमानी!
लेकिन सोचो तो रावण भी था महाज्ञानी!!
लेकिन अहंकार ने ज्ञान को कुचल डाला और फिर भगवान राम से उस का पड़ गया पाला।
फिर तो निश्चिंत ही था विनाश, धर्म ने कर दिया अधर्म का नाश।
हर बालक जब पैदा होता है, तो वो होता है सीधा सादा, तब नहीं होता उसका कोई भी दीन या धर्म।
लेकिन बढ़ती उम्र के साथ , उसे जकड़ लेता है उसका धर्म और जकड़ लेते हैं उसके कर्म।
यही दुनिया की रीत है, यही है क़ानून , यही है क़ायदा।
सोचो तो क्या किसी धर्म को अपनाने से क्या होता है कोई फ़ायदा?
ये हर शख़्स पर होता है निर्भर , कोई भी हो धर्म , लेकिन कीजिए अच्छे कर्म।
हर धर्म सिखाता है अच्छी बातें, देता है सिर्फ़ अच्छी शिक्षा।
लेकिन आप क्या सीखते हैं, इस की आप को एक ना एक एक दिन देनी पड़ती है परीक्षा।
जीवन का अंतिम सच है मृत्यु, ये शरीर है नश्वर, यही सच है जनाब।
लेकिन कोई जन्नत और कोई जहुन्नुम क्यूँ जाता है, इस सवाल का आपके पास है क्या कोई जवाब?
बढ़े बूढ़े और स्याने कहते थे, अच्छे कर्म कीजिए तो मिलेगी जन्नत।
और उनकी संतान अच्छे कर्म करे, सभी माँ बाप माँगते है यही मन्नत।
तो बनिए एक नेक़दिल इंसान, ऊँच नीच , जात पात में ना रखिए विश्वास।
हर कोई हर मानव का ऐहतराम, मान सम्मान करे, यही है मेरी आस।
दशहरा पर्व की हैं आपको लाख लाख बधाइयाँ, दिवाली के दिन भी खूब बजाना शहनाइयाँ।
बस इतनी है मेरी इल्तज़ा, कि कीजिए भले काम, ताकि बुराई पर हो अच्छाई की जीत।
चाहिए कोई राजा हो या रंक, सुल्तान हो या फ़क़ीर, कीजिए सब से प्रेम, कीजिए सब से प्रीत !!!
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा।