दिल ख़ामोश है मगर होंठ हँसा करते हैं , बस्ती वीरान है मगर लोग बसा करते हैं ।नशा मयक़दों में अब कहाँ है यारो लोग अब मय का नहीं “मैं” का नशा करते हैं ।यक़ीन मानो डर लगता है इन बस्तियों से ,इन बस्तियों को देख शैतान हँसा करते हैं ।कश्मकश ये है कि मयकदा जाने वाले लोग या “मैं “ का नशा करने वाले लोग , कौन ज़्यादा ख़तरनाक है , दोनो ही शरीफ़ होने का दम भरते हैं ।यह बस्तियों की वीरानगी , होगी कोई मजबूरी , लेकिन इसके बावजूद इन बस्तियों में बसना भी है ज़रूरी ।मयकदा जाना या “मैं “ को अपनाना , दोनो ही हैं नागवारा , लेकिन “मैं” को अपनाने वाला है ज़्यादा आवारा ।एक शराबी का नशा कुछ देर बाद उतर जाएगा , फिर वो शायद एक आम आदमी बन पाएगा ।लेकिन जो “मैं “ के नशे में चूर है , उसका नशा तो बिन पिए ही बढ़ता जाएगा ,और एक ना एक दिन वो हैवानियत फैलाएगा ।मयकदा जाने वाला व्यक्ति ज़रूर लड़खड़ाएगा , लेकिन कुछ देर बाद संभल जाएगा , लेकिन ये “मैं “ कहने वाला बाशिंदा लड़खड़ाता ही रहेगा , और यक़ीनन एक ना एक दिन बहुत पछताएगा ।ओ मूर्ख इंसान , तू इंसान है या कोई बकरी , जो “मैं “ “मैं “ किए जा रहा है, , क्या कुछ अहसास है तुझ को कि ऐसा कर तू बहुत कुछ गँवा रहा है ।इस “मैं” ने , इस अहम ने कर दिया है सत्यानाश , अगर ऐसा ही रहा तो निश्चित है विनाश , घोर विनाश ।मेहेरबानो , क़दरदानो , “मैं “ “मैं “ करना छोड़ दो , छोड़ दो ये बकरी की तरह मिमिआना , सब कुछ यहीं रह जाएगा , एक दिन सब को है पाँच तत्वों में विलीन हो जाना।अभी भी वक़्त है संभल जा , नीचे उतर आ आसमान से , सीख ले तू धरती पर चलना , अगर बात ज़्यादा बढ़ गयी तो फिर मुश्किल हो जाएगा तेरा सम्भलना ।“मैं “ “मैं “ करता रहेगा तो तेरे अपने भी हो जाएँगे तुझ से दूर ,और बहुत दिन तक ये अहम नहीं टिकेगा , सिर्फ़ कुछ और दिन ,फिर तू मुँह के बल गिरेगा और तेरा अहंकार हो जाएगा चूर चूर।सिकंदर भी ख़ाली हाथ गया था , तो तेरी क्या है औक़ात , अनेकों राजा और सुल्तान भी ख़ाक हो गए , तो तेरी क्या है जात ।तू “मैं “ “मैं” करता रहा तो ऐसा ना हो कि तुझे शमशान भूमि ले जाने के लिए चार लोग भी ना हो तैय्यार , अभी भी वक़्त है बदल ले अपना व्यवहार ।इस अहम शब्द से तू “अ “ को हटा दे , याद रख सिर्फ़ हम , हम यानि तू और तेरे साथी लोग , फिर देख ज़िंदगी में कितना बदलाव आएगा , सब सँवर जाएगा , तू जो है इतना बिखरा बिखरा , तू भी निखर जाएगा !!
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