उड़त चिरैया सी,
चहकती घर अंगना में,
छुम छुम पायल छनकाती,
बिटिया महकती घर अंगना में,
रचा रये ब्याओ छोटी सी मुनिया,
आज सजी वो,
दुल्हन बालिका वधू,
न जाने, घर गृहस्थी वो,
समझत ज्यौं गुड्डे-गुड़ियों को,
रच रहो आए ब्याह, सजो मंडप,
नख से शिख तक,
श्रंगार दुल्हन को करे वो,
बैंदी, बिंदिया, महावर,
झुमका हरवा औ कंगना वो,
पहने फुलकारी चुनरिया धानी,
अंखियों में कजरा,
लगा ज्यौं हो डिठोना,
अधरों पर मन मोहक
मुस्कान लिए ठांड़ीं अंगना,
देख रही मनुहार अम्मा का,
अंगना डरो मंडप हरीरो,
फैरे हो रये तारों की छैंया,
पंडित मंत्रों को उच्चार रहे,
भारी लंहगा गोटेदार बैयां,
नाऊन सम्हारत जात लंहगा,
अल्हड़ सी बालिका,
न जाने कोई रीति रिवाज,
कर दये मतारी दद्दा कन्यादान,
सिंदूर भर गओ सज गयी मांग,
बनी दुल्हन पराई हुई बिटिया आज,
भौजी नन्हीं काकी,
गीत गावें बिसरयौ ने,
ओ राखियो कुल को मान,
का जाने मौड़ी कुल को मान,
बनी सुहागन न कोई औको भान,
ज्यौं आई बिदाई की बैला,
रो रो घर भर दी कहे मौड़ी,
न जयी हूँ अकेली ससुराल,
नन्हीं दुल्हन कैसी ठिनक रही,
संगे मतारी तब जयी हूँ ससुराल ।
काव्य रचना- रजनी कटारे “हेम”
जबलपुर म.प्र.