नदी के किनारे-“राजीव कुमार झा”

नवरात्र के साथ
खुशियों को समेटे
घर से निकलकर
बाजार में
फूलों गुलदस्तों की
दुकानों पर
अक्सर नजर आती
कभी दरवाजे पर
किसी बच्चे को
गोद में लिए
खड़ी देती दिखाई
याद आती
दिवाली की रात
हर तरफ बजती
शहनाई
प्यार के मेले में
तुम शाम होने के
बाद
प्रियतम को
कभी घर आंगन से
बाहर
रात गहराने से पहले
ढूंढने आयी
यहां रोशनी के
जंगल में
सबको बधाई
चांद की रोशनी में
सजी रात
नदी के किनारे
बेहद सुंदर
अब देती दिखाई

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