
नरकासुर ने आतंक मचाया।
त्रस्त हुआ जनजीवन, बेबस, लाचार।
नरक -सम जीवन जनता जीती।
वध नरकासुर का कर आज के दिन।
कृष्ण ने मुक्ति यातनाओं से दिलाई।
इसी खुशी में नरक चतुर्दशी मनाई।।
तृष्णा रूपी नरकासुर का, डेरा है मानव मन में।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद में,
चूर हो, घुम रहा है आज मानव।
सीमा मर्यादाओं ने लांघी।
रिश्ते- नाते ध्वस्त हो गये।
ऐसे में, स्नेह, प्यार का दीप जला,
हर घर खुशियाँ लाऍं हम।
भाईचारे का दीप जला ,
नरक चतुर्दशी/छोटी दिवाली मनाऍं हम।।
🙏चंद्रकला भरतिया नागपुर 🙏