परेशान-“रजनी प्रभा”

हूं परेशान बहुत अरमानों को जला कर के,
दूं इल्ज़ाम किसे, मिलेगा क्या गिला कर के।

छीन लेता है वक्त सारी खुशियां ए ख्वाहिश,
बस एक नासूर सा रिश्ता दिला कर के।

लूटते यहां रोज ही बारात हर मजबूर का,
बस एक बार जनाजे से जिला कर के।

तिल_तिल की प्यास से मर रहा कोई,
क्या मिलेगा आखिर में,गंगाजल पीला कर के।

हसरत जिन्हें दो पल सुकून से जीने की,
तुम फारिक उन्हें महल_अटारी दिला कर के।

रजनी प्रभा

2 Comments

  1. Ritu jha

    Wah wah umda👌👌✍️✍️

  2. Brijesh Anand rai

    फारिक किसे कहते हैं?

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