पिता को रचना आसान नहीं होता।उसके व्यक्तित्व को रचनें ,कोई उपयुक्त शब्द ही नहीं मिलता।पिता प्रार्थना है पूजा है॥उनके समान कहाँ कोई दूजा है?माँ तो महान है ।हमें अपने तन में रच लेती है।पिता तो वो भगवान है,जो हमें अपने अंर्तमन में ही उत्पन्न कर लेता है।फिर तमाम उम्र लग जातें हैं हमें सिंचनें,हमें बीज से आंकुरित कर,नन्हें पौधें से बना देते है।एक विशाल व्यक्तित्व वाला फलदार वृक्ष,हमारे कद को खुद से बढ़ना देख,होते है अति प्रसन्न ।फिर सारी दुनियाँ को शान से बताते है।हमारी हर सफलता॥तभी तो कहतें हैं,जीवन में सबकुछ है मिलता ,पर माँ बाप की तरह मीठें फल ,छाया शीतल ,देने वाला ठिकाना दुबारा नहीं मिलता ॥निवेदिता सिन्हा.भागलपुर,बिहारbinnynivedita4@gmail.com

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शानदार रचना