कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता कभी धरती तो कभी आसमान है पिता जन्म दिया है अगर माँ ने ……. जानेगा जिससे जग , वो पहचान है पिता कभी हंसी और खुशी का मेला है पिता कभी कितना तन्हा और अकेला है पिता माँ तो कह देती है अपने दिल की बात सब कुछ समेटकर आसमान सा फैला है पिताकभी हँसी तो कभी अनुशासन है पिता कभी मौन तो कभी भाषण है पिता , माँ अगर घर में रसोई है …. तो चलता है जिससे घर वो राशन है पिता मेरा साहस मेरी इज्जत मेरा सम्मान है पिता , मेरी ताकत मेरी पूंजी मेरी पहचान है पिता जेठ की धूप में रेगिस्तान है पिता माथे पे टपकती पसीने की बूंद है पिता घर पर जलती हुई लाइट है पिता गृहस्थी की असली फाइट है पिता कोने में दबी चावल की बोरी है पिता मां के गले की डोरी हे पिता अगर देखा जाये तो परिवार के भगवान है पिताकवि ओ पी मेरोठा बारां राजस्थानमो.- 8875213775

बहुत सुन्दर