अनन्य भाव से माँ शारदे को अनंत नमन और धन्यवाद

भादों मास की पूर्णिमा से आरंभ हो ।
आश्विन मास की अमावस्या पर अंत हो ।।
पितृपक्ष की सोलह तिथि में पितरों का श्राद्ध हो ।
पितृदोष के निवारण हेतु पितरों को पिण्ड अर्पण हो ।।
जिस तिथि में किसी सदस्य का निधन हो ।
उस तिथि को हर वर्ष पितृपक्ष में तर्पण हो ।।
हर माता-पिता की ऐसी नेक संतान हो ।
तीन पीढ़ियों के पितरों का जिसे ध्यान हो ।।
पितरों का स्मरण कर ब्राह्मणों को दान हो ।
पितरों को तिलयुक्त जल की तीन अंजुली प्रदान हो ।।
पितृपक्ष की तरह से ही एक नव पर्व की नींव रखने की परंपरा का आरंभ किया जाना चाहिए। हमारे इस नव विचार का स्वागत किया जाना चाहिए। जिस प्रकार से हम सभी वर्ष भर अनेक प्रकार के दिवस मनाते रहते हैं। जैसे कि मित्रता दिवस, बिटिया दिवस इत्यादि। ठीक उसी प्रकार से हम सबको मिलकर अब से अपने पूर्वजों के जन्मदिवस को हिन्दी तिथि के अनुसार पितृपक्ष के सोलह दिवस की तर्ज पर सोलह दिवस में मनाना आरंभ करना चाहिए। धन्यवाद
धन्यवाद के धन से धन्यवाद
पितृ प्रकटोत्सव पर्व
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा से पर्व प्रारंभ हो ।
वैशाख कृष्ण अमावस्या पर अंत हो ।।
धूमधाम से जन्मदिवस का आनंद हो ।
पूर्वजों के प्रकट होने का परमानंद हो ।।
सोलह दिवस में तिथि अनुरूप खूब उत्सव हो ।
जीते जी खुशियाँ बाँटी, स्मरण में महोत्सव हो ।।
महान हस्तियों की हर वर्ष जयंती मनाते हो ।
अपने पूर्वजों की जयंती को भूल जाते हो ।।
क्या आज से मेरे नव विचारो को अपनाते हो ।
बुजुर्गों से पूछकर जन्मतिथि संज्ञान में लाते हो ।।
“पितृपक्ष” के सोलह दिवस हमें धर्म की परंपरा के चलते पुराणों से प्राप्त हुए हैं और “पितृ प्रकटोत्सव पर्व” हम विकास अग्रवाल बिंदल आपको उपहार स्वरूप सोलह दिवस अपने पूर्वजों को स्मरण करके खुशियाँ मनाने के लिए प्रदान कर रहे हैं और साथ ही हर वर्ष इस नव पर्व को मनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। “पितृ प्रकटोत्सव पर्व” को हम सभी “पितृपर्व” के नाम से भी याद रख सकते हैं।
©® विकास अग्रवाल बिंदल , भोपाल मध्यप्रदेश