जिन पर भी अरमान दिलों के वारे हैं
रिश्ते वो सारे ही निकले खारे हैं।
क्या ग़लती थी मेरी मैं ना जान सकी
सपने चकनाचूर हुए क्यों सारे हैं।
पास बचा ही क्या है मेरे ए मालिक
ख़ुशियां, ख़्वाहिश, ख़्वाब सभी कुछ हारे हैं।
तकलीफ़ो में कैसे उनको देखे हम,
जिनकी आंखों के हम खुद ही तारे हैं।
फ़िक्र नहीं क्यों उन्हें ‘व्यथा’ कुछ भी मेरी
सारी दुनिया के जो प्रभु रखवारे हैं।
कीर्ति तिवारी