
किसै कै शर्म लिहाज रही कोण्या, दुनिया म्ह इसे इज्जतदार घणे होगे।
बेशर्मी का ओड़ रहा ना, छोटे बड़े एक बराबर होगे,
बड़े बूढ़े आप बिगड़ गए, निकम्मे ये सारे टाबर होगे,
एक गिलास म्ह दारू पीवैं कट्ठे न्यू उबर शाबर होगे,
घर म्ह अनाज रही कोण्या, देख कै हालात इसे दूर रिश्तेदार घणे होगे।
ओल्हा पर्दा करैं कोण्या ये ढाठा मार कै चालैं सँ,
देख पराया मर्द छैल खड़ी खड़ी गाल म्ह हालैं सँ,
माँ बाप की शर्म भाजगी किसै लत्ते पहरा घालैं सँ,
झूठी या बात आज रही कोण्या, छोरी बेच बेच कै साहूकार घणे होगे।
रपिये धेली अर शराब म्ह वोट बेच कै रोवैं भतेरे,
धर्म मजहब और जातपात का बोझा ढ़ोवैं भतेरे,
इस गंदी राजनीति कै पाछै भाईचारा खोवैं भतेरे,
जुल्म कै खिलाफ आवाज रही कोण्या, चापलूस ताबेदार घणे होगे।
दादा जगन्नाथ के बिना सूना यू समचाणा होग्या,
गुरु रणबीर सिंह देख जमाना खुद शर्माणा होग्या,
ज्ञान की बात रही कोण्या बेहूदा यू गाणा होग्या,
“सुलक्षणा” की तान बाज रही कोण्या, बड़े बड़े कलाकार घणे होगे।
©® डॉ सुलक्षणा