
सनातन धर्म की विभिन्न स्मृतियों में कार्तिक शुक्ल द्वितिया भगवान सूर्य पुत्र यम एवं पुत्री यमी तथा चित्रगुप्त का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है । कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि यम द्वितीया भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना के लिए समर्पित है । भारतीय और नेपाली का नेवार समुदाय द्वारा भाई की लंबी आयु वृद्धि तथा सर्वांगीण विकास के लिए यांम द्वितीया व गोधन एवं चित्रगुप्त पूजा किया जाता है । पुराणों के अनुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भगवान सूर्य की पुत्री यमुना ने भगवान सूर्य पुत्र यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराने के कारण नारकीय जीवों को यातना से छुटकारा दिला कर तृप्त किया था । यमद्वितीया को अपने घर मुख्य भोजन नहीं कर अपनी बहन के घर जाकर उन्हीं के हाथ से बने हुए पुष्टिवर्धक भोजन को स्नेह पूर्वक ग्रहण करना चाहिए तथा जितनी बहनें हों उन सबको पूजा और सत्कार के साथ विधिपूर्वक वस्त्र, आभूषण आदि देना चाहिए। बहन के हाथ का भोजन उत्तम माना गया है। सगी बहन के अभाव में अन्य बहनें के हाथ का भोजन करना चाहिए जैसे अपने चाचा, मामा, मौसी की पुत्री को या अच्छे मित्र की बहन को बहन मानकर ऐसा करना चाहिए। बहन को चाहिए कि वह भाई को शुभ आसन पर बिठाकर उसके हाथ-पैर धुलाये, स्वयं स्पर्श नहीं करे। गंधादि से उसका सम्मान करे और दाल-भात, फुलके, कढ़ी, सीरा, पूरी, चूरमा अथवा लड्डू, जलेबी, घेवर, पायसम (दूध की खीर) भाई बहन को अन्न, वस्त्र आदि देकर उसके चरण स्पर्श कर शुभाशीष प्राप्त करे। उच्चासन पर चावल के घोल से पांच शंक्वाकार आकृति बनाई जाती है। उसके बीच में सिंदूर लगा दिया जाता है। आगे में स्वच्छ जल, 6 कुम्हरे का फूल, सिंदूर, 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलायची, छोटी इलाइची, हर्रे, जायफल इत्यादि रहते हैं। कुम्हरे का फूल नहीं होने पर गेंदा का फूल रह सकता है। बहन भाई के पैर धुलाती है। इसके बाद उच्चासन पर बैठा कर और अंजलि-बद्ध होकर भाई के दोनों हाथों में चावल का घोल एवं सिंदूर लगा देती है। हाथ में मधु, गाय का घी, चंदन लगा देती है। इसके बाद भाई की अंजलि में पान का पत्ता, सुपारी, कुम्हरे का फूल, जायफल इत्यादि देकर कहती है – “यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को; जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु।” यह कहकर अंजलि में जल डाल देती है। इस तरह तीन बार करती है, तब जल से हाथ-पैर धोती और कपड़े से पोंछ देती है। टीका लगा देती है। इसके बाद भुना हुआ मखान खिलाती है। भाई बहन को अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपहार देने के बाद उत्तम पदार्थों का भोजन कराया जाता है। कायस्थ समाज द्वारा अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में श्री धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले श्री चित्रगुप्त जी का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं।
विष्णु पुराण 3-2 – 4 एवं मार्कण्डेय पुराण 74 – 4 के अनुसार भगवान सूर्य की भार्या सरन्यू की पुत्री यमी और सगे भाई यमराज , रेवंत , श्राद्धदेव मनु और अश्विनी कुमार हैं। यम तथा यमी जुड़वाँ जन्मे थे । यमी का दूसरा नाम यमुना है। ऋग्वेद 10 /14 के अनुसार विवस्वान् के आश्वद्वय यम तथा यमी सरण्यु के गर्भ से हुए थे ।शिवपुराण एवं कूर्म पुराण के अनुसार भगवान सूर्य विवस्वान की पुत्री यमी ने इंद्र के आदेश से शक्तिपुत्र पराशर के कल्याणार्थ दासराज के घर सत्यवती जन्म लिया था । नगरी प्रचारिणी सभा , वाराणसी संस्करण 1967 द्वारा हिंदी विश्वकोश , खंड 9 का पृष्ठ 466 और 467 में वर्णित उल्लेखानुसार द्वितीया के संबंध में यम अपनी बहन यमी के यहाँ अतिथि होकर जाने पर यमी अपने भाई यम को पकवान ‘फरा’ व खीर बनाकर खिलायी थी । यमराज खीर खाकर अपनी बहन पर परम प्रसन्न हुए और चलते समय उनसे वरदान माँगने को कहा। यमुना ने अपने भाई से वर माँगा कि भाई बहन यमद्वितीया के दिन मेरे अर्थात यमुना नदी में स्नान कर यमुना नदी के किनारे पकवान बनाकर खाने वाले यमराज की यातना से मुक्त रहें। यम द्वितीया को घर के आंगन में गाय की गोबर से घर बना कर गाय की गोबर से यांम और यमी की मूर्ति बनाते है । मूर्ति पर काटों युक्त चिड़चिड़ी का पौधा , पके हुए इट रखा जाता है । बहने यम एवं यमी की उपासना कर अपने भाई के लिए दीर्घायु होने के लिए प्रार्थना करती है । यम और यमी के घर में रखे चीड़ चिड़ी एवं पके हुए इट को मुशल से कूटती है ताकि भाई पर होने वाला सारे कष्ट से मुक्त हमेशा बनी रहे कि गीत गाती है । गोधन को भैया दूज , अन्नकूट में बहने बजरी या चना , कसैली , पैन , रोड़ी , सिंदूर , मिश्री , छुहेड़ा , नारियल यम यमी पर चढ़ती है । यह प्रसाद अपने भाई को खिलाती है ।
करपी , अरवल , बिहार 804419