
मां तुम मुझे बहुत याद आती हो,
सोच सोच कर मेरी आंखें रोज ही भर आती है,
तुम्हारा सुंदर उज्जवल रूप आंखों से कभी हटता ही नहीं,
ऐसा प्रेम, निर्मल मन कहीं मिलता ही नहीं,
मन में कुछ टीस उठाती है,
जब माँ की बात कहीं पर चलती है,
जल्दी सुबह उठकर देर आधी रात तक
तेरा काम करते हुए चूड़ियों की खनक
आज भी मेरे कानों में खनकती है,
उठ जा, नहा ले, खा ले, पढ़ ले,
शब्द अब कहीं नहीं मैं पाती हूं,
मां तुम मुझे बहुत याद आती हो।
तेरे गीत, तेरे काम करते हुए गुनगुनाना,
तू भी सीख ले, कह कर खिलखिलाना,
चाची ताइयों से खूब देर तक बतलाना,
फिर कह कर काम पड़ा है भाग- भाग कर काम निबटाना,
रोज सुबह उठकर सत्संग में जाना,
आकर हमें अपने-अपने कामों को करने के लिए डांटना और समझाना,
अपने बचपन में ना पढ़ पाने के रोज नए कारण बताना,
फिर से पढ़ना सीखने के लिए अपने पोते -पोतियो को गुरु बनाना,
हम पर रौब जमाने के लिए हमारे साथ -साथ अपना चश्मा लगाकर पूरा अखबार पढ़ जाना,
हमें यह सिखलाना के प्रतिभा की कमी नहीं है तुम्हारी माँ में
बस जिम्मेदारियां के कारण अपने सपनों को पड़ा था दबाना,
हां हमें तुम पर गर्व है, तुम्हारी ईमानदारी, स्पष्टवादिता,
सच्चाई बोलने की आदत के बीज जो हमें पड़े हैं,
लोग कहते हैं कि ‘तुम में’ तुम्हारी मां की झलक है,
यह सुनकर मेरी ‘बाँछे खिल’ जाती हैं,
हाँ, मां तुम मुझे बहुत याद आती हो।
हर मुश्किल में सीख देना, साथ देना, और रास्ता दिखलाना,
मेरी खुशी में खुश, गम में उदास हो जाना,
कई बार पापा की मनमर्जी की शिकायतें करते हुए बुदबुदाना,
कभी किसी बात पर हमसे गुस्सा होकर थोड़े से मनाने पर ही मान जाना
और फिर खूब प्यार लुटाना,
हमेशा कुछ ना कुछ हमारे लिए नया सामान लाकर रखना,
मुझे सबसे ज्यादा प्यार करना, बड़े भाई- बहनों खासकर मेरी बहन को यह बात अखरना
और फिर मुझ पर चिढ़कर चढ़ना,
हमारे प्यार के नाप-तौल पर पापा द्वारा मेरी बहन को ज्यादा प्यार करने की घोषणा पर क्लेश का काटना,
और हमारा हंसना,
सब कुछ तुम अपने आंचल में ले गई हो मां, मां तुम बहुत याद आती हो।
मेरे कॉलेज से थोड़ा लेट हो जाने पर बहुत परेशान हो जाना,
पापा का समझाना और तुम्हारा ही बच्चा बन जाना,
सारा घर सिर पर उठाना,
मेरे लिए अड़ जाना और अकेले में समझाना,
मुझे पता है तू हर पल मेरे साथ है,
तेरे साथ होने का मुझे अहसास है,
पाया था तुझे मैंने अपने पास तब भी जब सांसों की डोर उलझी थी,
कोरोना में लड़ती सांसों की जंग मैं तेरे दिए हौसले से लड़ी थी,
कहने को तो सब है,
पर जब घर जाती हूं तो तेरी ही झलक खोजती हूं,
बड़े भाइयों का प्यार है,
पापा का दुलार ,अपनों का साथ है
पर तेरी कमी सालती है,
हां मां तुम मुझे बहुत बहुत याद आती हो।
सविता अधाना, गांव तिगांव फरीदाबाद , हरियाणा