यह मत सोचो सूर्य हो गया, तड़ी पार क्यों है?
है अपराध पूछना भी अब, अंधकार क्यों है??
कौन बताए मुख क्यों लटका,
आज मनुजता का ?
दानवता का मुखड़ा इतना, चमकदार क्यों है??
श्वेत कपोत दिख रहा घायल, त्राहिमत्राहि मची।
क्रूर अहिंसा के हाथों में, फिर कटार क्यों है??
पावनता की शुभ प्रतीक थी, निर्मल सुरसरिता।
मैली उसी पुण्यसलिला की, हुई धार क्यों है??
बढ़कर पूर्णचन्द्र पूनम का, अत्याचार हुआ।
मत कहना कल जनमानस में, उठा ज्वार क्यों है??
सत्य सनातन पर कीचड़ जो, दी उछाल तुमने।
कल चुनाव के बाद सोचना, हुई हार क्यों है??
खुश होने से पहले सोचो, क्या रहस्य इसमें।
विष के घट से छलक रहा यह, मधुर प्यार क्यों है।
—डाॅ० अनिल गहलौत💐
Bhaut khoob 👌👌✍️✍️