रिहाई-“रजनी प्रभा”

तुम्हारे कैद से मुझे अब,रिहाई चाहिए नहीं
मुझे बीमार रहने दो, दवाई चाहिए नहीं।

कर लो कैद सांसों में,ताउम्र के लिय,
पल भर की भी, जुदाई चाहिए नहीं।

आए हो नूर बनके मेरी सुनी दुनियां में
के भाने लगी बाहारे,तन्हाई चाहिए नहीं।

बिन फेरे हम तेरे हुए,ख्वाहिशें जवां हुई
परिणय की हमें अब,शहनाई चाहिए नहीं.

है आरजू तुम समा जाओ मेरे किरदार में ऐसे
फिर हमें खुद की भी परछाई चाहिए नहीं।

रजनी प्रभा

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