लो एक और मजनू ख़ाक हो गया, राख हो गया-“निरेन कुमार सचदेवा”

वो लफ़्ज़ कहाँ से लाऊँ , जो तुझको मोम कर दें —— मेरा वजूद पिघल रहा तेरी बेरुख़ी से।
हर पल पिघल रहा हूँ, हर पल बिखर रहा हूँ, नहीं संभल रहा हूँ, सब कुछ हो रहा है बस तेरी कमी से ।
पत्थर दिल भी पिगल जाते हैं, ऐसा लिखा है किताबों में ।
तुझे बदलना ही नहीं था, तू क्यों आई थी मेरे ख़्वाबों में ।
आती रहीं तू निरंतर, हर रात होती थी तुझ से मुलाक़ात।
अब संम्भलते नहीं मुझ से मेरे अहसास और जज़्बात।
क्यूँ है मुझे तुझ से इतना लगाव, कैसे मोम पत्थर बन जाए , तू ही दे कोई सुझाव।
ये शायद ना हो पाएगा, तुझे ही लाना पड़ेगा अपने स्वभाव में बदलाव।
कहीं ऐसा ना हो कि मैं इस तरह बिखर जाऊँ कि फिर संभलना हो जाये नामुमकिन।
इस तरह पिगल जाऊँ, कि बहता ही रहूँ पल छिन।
अभी भी है वक़्त, इस मोम को ना और पिघलने दे ।
जला दे अपनी प्रीत से मेरी लौ, इस मोम को मोहब्बत के उजालों में जलने दे ।
देख तेरी बेवफ़ाई , मेरे लफ़्ज़ों में है भी उदासी छाई।
चल, एक तो हुआ फ़ायदा——-सुना है कि इश्क़ का यही होता है क़ानून और कायदा।
इश्क़ कामयाब हों तो ये कायनात है जन्नत, नाकामयाब इश्क़ हो तो ज़िन्दगी बन जाती है नर्क।
मेरी ज़िंदगी का तो तेरा पत्थर दिल मिजाज़ ने कर दिया है बेड़ा गर्क।
फ़ायदा ये हुआ कि मैं बन गया एक टूटा फूटा शायर।
इतनी बेरुख़ी के बाद भी मैं हूँ ज़िंदा, नहीं ले सका अपनी जान , यकीनन हूँ मैं कायर।
ख़ैर, ये ज़िन्दगी भी मौत से बदतर है, हुआ तेरा रुसवाई का कुछ ऐसा असर है।
एक ना दिन तो ख़त्म हो जाएगा ये पिघलने का सिलसिला——।
निकलेगा मेरा जनाज़ा तो यकीनन यही कहेंगे लोग , लो एक और मजनू मर गया ——-!
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा।

1 Comment

  1. Kuldeep singh रुहेला

    बहुत सुंदर लिखा आपने बहुत अच्छा कहा

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