राख से भी आएगी ख़ुशबू मोहब्बत की , मेरे ख़त तुम यूँ सरेआम जलाया ना करो।
कहीं ऐसा ना हो कि छा जायें घटाएँ घनघोर , मौसम को तुम यूँ रिझाया ना करो।
इधर तुमने मेरे ख़त जलाए , उधर छा गयी है
खुमारी, महज़ एक ही पल में यूँ दुनिया लगने लगी है न्यारी।
अल्फ़ाज़ों की सातवें आसमानों में अब लग चुकी हैं नुमाईशें, फ़िज़ा की बात छोड़ो, अब तो खिज़ा भी करने लगीं हैं ख़्वाहिशें।
ख़त जलाने से घमासान उठा यूँ जुनूनियत इश्क़ का धुआँ, दिखती है अब प्रीत ही, मैं देखूँ जहाँ।
सुनने में आया है कि फ़रिश्ते भी धरती पर आ कर इन हवाओं का लेना चाहतें हैं मज़ा।
हवाओं में हैं शोख़ियाँ , मस्तियाँ ही मस्तियाँ।
इश्क़ ने वो मुक़ाम जीत लिया है, कि बन चुकी हैं उसकी हस्तियाँ।
पहले तो वो प्यार से भरे अल्फ़ाज़ महज़ चंद पन्नों में थे क़ैद, अब वो हैं इन खुली हवाओं में घूम रहें हैं आज़ाद।
और आप मानो या ना मानो , इन हवाओं की ख़ुशबू ने अनेकों आशिक़ दिलों को कर दिया है आबाद।
इन ख़तों की राख भी है पाक और बेशक़ीमती, इस राख से आ रही है स्नेह की अजब महक।
इस राख को तो कई आशिक़ों ने माथे पर लगा लिया है , और इस राख का टीका लगा उनके दिलों में जाग उठी है प्यार की कसक!
अहसासे प्यार है एक नियामत , एक सौग़ात , एक तोहफ़ा, ये तो निश्चित है , इस सच्चाई पर कोई मानव नहीं जता सकता शक।
सिर्फ़ इस बात का मलाल है , कि अब वो अल्फ़ाज़ खुली हवाओं में मौजूद हैं, सच पूछो तो इन लफ़्ज़ों पर था महज़ तुम्हारा हक़!
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा।
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